Monday, September 16, 2013

'मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग'
मैनें समझा कि तू तो दरख्शां१ है हयात २ 
तेरा गम है तो गमें - दहर३ का झगडा क्या है 
तेरी सूरत से है आलम४ में बहारों को सबात५ 
तेरी आँखों के सिवा दुनियां में रखा क्या हैं ?
       तू जो मिल जाये तो तकदीर निगूं६  हो जाये 
यूँ न था , मैने फकत चाहा था यूँ हो जाये 
और भी दुःख है जमाने में मुहब्बत के सिवा 
राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत७ के सिवा 
अनगिनत सदियों के तारिक ८ बहीमाना९  तिलिस्म 
रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब१० में बुनवाये हुए 
जा - ब - जा११ बिकते कूचा१२ - ओ - बाज़ार में जिस्म 
खाक१३  में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए 
        लौट  जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे 
       अब भी दिलकश१४ है तेरा हुस्न , मगर क्या कीजे 
और भी दुख है जमाने में मुहोब्बत के सिवा 
राहतें और भी है वस्ल कि राहत के सिवा 
मुझसे पहली से मुहब्बत मेरे महबूब न मांग |

( फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ )
              ----------------------------------------------------------------
१   दरख्शां ------------------रौशन , चमकता हुआ |
२   हयात --------------------जीवन 
३    गमें दहर ------------------जमाने का दुःख 
४    आलम ----------------------दुनियां 
५    सबात ----------------------ठहराव 
६    निगूं -------------------------बदल जाना 
७    वस्ल कि राहत ---------------मिलन का आनंद 
८     तारिक ----------------------अँधेरा 
९     बहीमाना --------------------पशुवत , क्रूरता 
१०   रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब------ रेशम , अलतस और मलमल , कपड़ों के प्रकार 
११   जा - ब - जा ------------------जगह - जगह 
१२   कूचा --------------------------गली 
१३    खाक -------------------------धुल , राख
१४   दिलकश -----------------------आकर्षण 
शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ  जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ  ग़ैर की बस्ती हैकब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
झिलमिलाते कुमकुमों की राह में ज़ंजीर सी  रात के हाथों में दिन की मोहिनी तस्वीर सी  मेरे सीने पर मगरचलती हुई शमशीर सी  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
ये रुपहली छाँवये आकाश पर तारों का जाल  जैसे सूफ़ी का तसव्वुरजैसे आशिक़ का ख़याल  आह लेकिन कौन समझेकौन जाने जी का हाल  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
फिर वो टूटा एक सिताराफिर वो छूटी फुलझड़ी  जाने किसकी गोद मेंआई ये मोती की लड़ी  हूक सी सीने में उट्ठीचोट सी दिल पर पड़ी  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
रात हँस – हँस के ये कहती है कि मयखाने में चल  फिर किसी शहनाज़-ए-लालारुख के काशाने में चल  ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल   ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
हर तरफ़ बिखरी हुई रंगीनियाँ रानाइयाँ  हर क़दम पर इशरतें लेती हुई अंगड़ाइयां  बढ़ रही हैं गोद फैलाये हुए रुस्वाइयाँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
रास्ते में रुक के दम लूँये मेरी आदत नहीं  लौट कर वापस चला जाऊँमेरी फ़ितरत नहीं  और कोई हमनवा मिल जायेये क़िस्मत नहीं  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
मुंतज़िर है एकतूफ़ान-ए-बला मेरे लिये  अब भी जाने कितनेदरवाज़े वहां मेरे लिये  पर मुसीबत है मेराअहद-ए-वफ़ा मेरे लिए  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़ा भी तोड़ दूँ  उनको पा सकता हूँ मैं ये आसरा भी छोड़ दूँ  हाँ मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-हवा भी तोड़ दूँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
एक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब  जैसे मुल्ला का अमामाजैसे बनिये की किताब  जैसे मुफलिस की जवानीजैसे बेवा का शबाब  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
दिल में एक शोला भड़क उट्ठा हैआख़िर क्या करूँ  मेरा पैमाना छलक उट्ठा हैआख़िर क्या करूँ  ज़ख्म सीने का महक उट्ठा हैआख़िर क्या करूँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
जी में आता है, ये मुर्दा चाँद-तारे नोंच लूँ  इस किनारे नोंच लूँ, और उस किनारे नोंच लूँ  एक दो का ज़िक्र क्या, सारे के सारे नोंच लूँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
मुफ़लिसी और ये मज़ाहिरहैं नज़र के सामने  सैकड़ों चंगेज़-ओ-नादिरहैं नज़र के सामने  सैकड़ों सुल्तान-ओ-ज़ाबिरहैं नज़र के सामने  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
ले के एक चंगेज़ के हाथों से खंज़र तोड़ दूँ  ताज पर उसके दमकता है जो पत्थर तोड़ दूँ  कोई तोड़े या न तोड़ेमैं ही बढ़कर तोड़ दूँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
बढ़ के इस इंदर-सभा का साज़-ओ-सामाँ फूँक दूँ  इस का गुलशन फूँक दूँउस का शबिस्ताँ फूँक दूँ  तख्त-ए-सुल्ताँ क्यामैं सारा क़स्र-ए-सुल्ताँ फूँक दूँ  ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

Wednesday, May 23, 2012

जिंदगी

करवट की वजह से जब भी नींद खुल जाती है तो अधूरे ख्वाबों को पकड़ने की कोशिश करता हूँ . 
कभी मन करता है की खुले आकाश के नीचे बस हाथ फैलाये बिना कुछ कहे घंटो खडा रहता हूँ. 
या कभी इन चंचल तितलियों के पंखों पर सवारी करने का मन करने लगता है.
 उनींदी आँखों से जो भी देखता हूँ सच मान लेता हु. 
मुझे  कभी पहाड़ लुभाते है तो कभी लोग. लोगों को जानने , 
उनसे बात करने की, उन्हें सुनाने की ख्वाहिश सदा साथ रहती है.
 कुछ भी जो लीक से हटकर  है, मुझे  पसंद है. 
जिंदगी को हमेशा परदों में ही मिलता हूँ.
 मैंने सुना है जिंदगी बहुत खुबसूरत है 

Monday, May 21, 2012

एक चिठ्ठी राजीव गाँधी को:


प्रिय राजीव,

आज आपको इस दुनिया से कुछ किये हुए २१ साल पुरे हो गए हैं. आज आपकी बहुत याद आ रही है तो मैंने सोचा की क्यूँ ना आपको एक  चिठ्ठी  लिखू मुझे उम्मीद है की आप जहा पर भी इस समय हैं आपको अपने भारत की याद आ रही होगी, और आप अपने भारत के लोगों को बहुत याद  कर रहे होंगे.

आज मै सोच रहा हूँ की अगर आप की मौत ना हुई होती और आपको २-३ कार्यकाल और मिला होता तो भारत आज कहा खड़ा होता. आपकी जानकारी के लिए आपको बता दू की आप जिस  आईटी सेक्टर की नीव भारत में डाले थे, वो आज वट वृक्ष बन गया है. मेरे जैसे लाखों लोग इसकी वदौलत जी खा रहे हैं. फ़ोन हर हाथ में पहुच गया है. आपने जिस युवा वर्ग को ध्यान में रख के  वोट देने की आयु 18 साल  रखा था, वो बहुत ख़ामोशी से सरकारों को उनकी औकात याद  दिला देता है. आप ने जिस पंचायती राज के बारे में सोचा था वो भी बहुत कामयाब रहा है.

आज मै सोचता हू की आप कितने दूरदर्शी थे. आपने अमेरिका के साथ रिश्तों को बनाया, चीन के साथ रिश्तों को सामान्य किये. आज जब मै सोचता हू की जब आपने बोफोर्ष सौदा किया होगा तो आपके मन में जरुर अपने देश को मजबूत बनाने का सपना रहा होगा ये अलग बात है कि आपको बदनामी मिली लेकिन आपको ये जान के ख़ुशी होगी कि कारगिल उसी बोफोर्स तोपों के चलते जीता गया था और उस समय सैनिक आपके जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. रामजेठमलानी जो कि आप पे रोज आरोप  लगाते थे जब वो २००४ के चुनाव लखनऊ से लड़ रहे थे तो उन्होंने स्वीकार किया था कि "हमने उस यंग इंडियन को गलत समझा. वो बहुत आगे कि सोचता था." आपको ये भी जान के ख़ुशी होगी कि आपको कोर्ट ने बेदाग साबित किया था.

राजीव, आज समझ में आता है कि आप कितना आगे कि सोचते थे. आपको तो याद होगा कि १९८५ में कांग्रेस के शताब्दी अधिवेशन में कहा था कि जब हम १०० पैसे यहाँ से भेजते है तो लोगों तक १५ पैसे ही जा पाते है बाकी ८५ पैसे दलाल  बीच में ही खा जाते हैं. आपको ये जान के बहुत दुःख होगा कि आज के समय में शायद ५ पैसा भी नहीं जा पता है.
आपने पंजाब, आसाम,  पूर्वोतर भारत में शान्ती समझौते किये. श्रीलंका में शान्ती सेना भेजे जिसकी कीमत आपको जान दे के चुकानी पड़ी, वहाँ तो शान्ती स्थापित हो गयी है, लेकिन नक्सलवाद बहुत ज्यादा फैल गया है. 

मै बहुत दुःख के साथ बता रहा हू कि आपके बहुत सारे सपने अभी भी पुरे नहीं हो पाए हैं. आपके भारत में अभी भी इंसान भूख से, बेकारी से बेबसी  से मरते हैं. कहने को हम संसार कि छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए है लेकिन अमीरी-गरीबी का भेद बहुत ज्यादा बढ़ गया है. आज भी आपके भारत में लाखों बच्चे स्कूल नहीं जाते. अभी भी लाखो औरतों के पास पहने को कपडे नहीं हैं. आपको गंगा एक्शन प्लान तो याद ही होगा जो आपने  गंगा को स्वच्क्ष रखने के लिए शुरू किया था उसका सारा पैसा भ्रस्टाचार की भेट चढ़ गया. गंगा आज भी अपनी बेबसी  पे आसू बहा रही है और दिन पे दिन मरती जा रही है.
आज आपकी कांग्रेस भी बहुत बदल गयी है. आपके समय में जो कांग्रेस गरीबों के लिए सोचती थी, आम हिन्दुस्तानियों के लिए सोचती थी, आज वो भी पूंजीवादियों के लिए सोचती है. कहने को तो आज भी समाजवाद का नारा देती है लेकिन समाजवाद अब कांग्रेस के घोषणापत्रों पे ही रह गया है.

आपके समय में जो कांग्रेस काश्मीर से ले के कन्याकुमारी तक होती थी उस कांग्रेस का आधार बहुत तेजी से सिमटता जा रहा है. अब कांग्रेस में जमीं पे काम करने वालों कि पूछ नहीं होती, इसकी नीतियाँ वातानुकूलित कमरों में तैयार होती हैं.
और अंत में आपसे एक शिकवा है कि आपको इतनी जल्दी जाने कि जल्दी क्या थी. काश आपने उस समय सोचा होता कि आपके बिना आपके भारत का क्या होगा.
इश्वर आपकी आत्मा को शान्ती प्रदान करे.


आपका,
दीपक 

तेरे ख़त

प्यार की आख़री पूँजी भी लुटा आया हूँ
अपनी हस्ती को भी लगता है मिटा आया हूँ
उम्र भर की जो कमाई थी गँवा आया हूँ
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

तूने लिखा था जला डालूं मै तेरी तहरीरें
तूने चाहा था जला डालूं मै तेरी तस्वीरें
सोच ली मैने मगर और ही कुछ तदबीरें
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

तेरी ख़ुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे
प्यार में ड़ूबे हुए ख़त मै जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मै जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाए रखा
जिन को एक उम्र कलेजे से लगाए रखा
दीन जिनको जिन्हे ईमान बनाए रखा

जिनका हर लफ़्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैग़ाम-ए-ज़ुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह

तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे
सालहासाल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे

तेरे रुमाल तेरे ख़त तेरे छल्ले भी गये
तेरी तस्वीरें तेरे शोख़ लिफ़ाफ़े भी गये
एक युग खत्म हुआ युग के फ़साने भी गये
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

कितना बेचैन उन्हे लेने को गंगाजल था
जो भी धरा था उन्ही के लिये वो बेकल था
प्यार अपना भी तो गंगा की तरह निर्मल था
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

(राजेन्द्रनाथ 'रहबर)

नशीली रात में, जब तुमने जुल्फों को संवारा  है
हमारे जज्बा-ए-दिल को, उमंगो ने उभारा है
गुलो को मिल गयी  रंगत, तुम्हारे सुर्ख गालों से
सितारों ने चमक पाई तब्बसुम के उजालों  से
तुम्हारी मुस्कराहट ने बहारो को निखारा है
हमारे जज्बा-ए-दिल को  उमंगो ने उभारा  है
लबे रंगीन अरे तौबा गुलाबी कर दिया मौसम
तुम्हारी शोख नजरों ने शराबी कर दिया मौसम
नशे में चूर है आलम, नशीला हर नजारा है
हमारे जज्बा-ए-दिल दिल को, उमंगो ने उभरा है
रात यूँ दिल में तेरी याद आयी
जैसे वीराने में चुपके से बहार आए
जैसे सहराओं में हौले से चले यादे - नसीम 
जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाये 
(फैज़ अहमद फैज़ )