'मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग'
मैनें समझा कि तू तो दरख्शां१ है हयात २
तेरा गम है तो गमें - दहर३ का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम४ में बहारों को सबात५
तेरी आँखों के सिवा दुनियां में रखा क्या हैं ?
तू जो मिल जाये तो तकदीर निगूं६ हो जाये
यूँ न था , मैने फकत चाहा था यूँ हो जाये
और भी दुःख है जमाने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत७ के सिवा
अनगिनत सदियों के तारिक ८ बहीमाना९ तिलिस्म
रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब१० में बुनवाये हुए
जा - ब - जा११ बिकते कूचा१२ - ओ - बाज़ार में जिस्म
खाक१३ में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश१४ है तेरा हुस्न , मगर क्या कीजे
और भी दुख है जमाने में मुहोब्बत के सिवा
राहतें और भी है वस्ल कि राहत के सिवा
मुझसे पहली से मुहब्बत मेरे महबूब न मांग |
( फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ )
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१ दरख्शां ------------------रौशन , चमकता हुआ |
२ हयात --------------------जीवन
३ गमें दहर ------------------जमाने का दुःख
४ आलम ----------------------दुनियां
५ सबात ----------------------ठहराव
६ निगूं -------------------------बदल जाना
७ वस्ल कि राहत ---------------मिलन का आनंद
८ तारिक ----------------------अँधेरा
९ बहीमाना --------------------पशुवत , क्रूरता
१० रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब------ रेशम , अलतस और मलमल , कपड़ों के प्रकार
११ जा - ब - जा ------------------जगह - जगह
१२ कूचा --------------------------गली
१३ खाक -------------------------धुल , राख
१४ दिलकश -----------------------आकर्षण