Wednesday, May 23, 2012

जिंदगी

करवट की वजह से जब भी नींद खुल जाती है तो अधूरे ख्वाबों को पकड़ने की कोशिश करता हूँ . 
कभी मन करता है की खुले आकाश के नीचे बस हाथ फैलाये बिना कुछ कहे घंटो खडा रहता हूँ. 
या कभी इन चंचल तितलियों के पंखों पर सवारी करने का मन करने लगता है.
 उनींदी आँखों से जो भी देखता हूँ सच मान लेता हु. 
मुझे  कभी पहाड़ लुभाते है तो कभी लोग. लोगों को जानने , 
उनसे बात करने की, उन्हें सुनाने की ख्वाहिश सदा साथ रहती है.
 कुछ भी जो लीक से हटकर  है, मुझे  पसंद है. 
जिंदगी को हमेशा परदों में ही मिलता हूँ.
 मैंने सुना है जिंदगी बहुत खुबसूरत है 

Monday, May 21, 2012

एक चिठ्ठी राजीव गाँधी को:


प्रिय राजीव,

आज आपको इस दुनिया से कुछ किये हुए २१ साल पुरे हो गए हैं. आज आपकी बहुत याद आ रही है तो मैंने सोचा की क्यूँ ना आपको एक  चिठ्ठी  लिखू मुझे उम्मीद है की आप जहा पर भी इस समय हैं आपको अपने भारत की याद आ रही होगी, और आप अपने भारत के लोगों को बहुत याद  कर रहे होंगे.

आज मै सोच रहा हूँ की अगर आप की मौत ना हुई होती और आपको २-३ कार्यकाल और मिला होता तो भारत आज कहा खड़ा होता. आपकी जानकारी के लिए आपको बता दू की आप जिस  आईटी सेक्टर की नीव भारत में डाले थे, वो आज वट वृक्ष बन गया है. मेरे जैसे लाखों लोग इसकी वदौलत जी खा रहे हैं. फ़ोन हर हाथ में पहुच गया है. आपने जिस युवा वर्ग को ध्यान में रख के  वोट देने की आयु 18 साल  रखा था, वो बहुत ख़ामोशी से सरकारों को उनकी औकात याद  दिला देता है. आप ने जिस पंचायती राज के बारे में सोचा था वो भी बहुत कामयाब रहा है.

आज मै सोचता हू की आप कितने दूरदर्शी थे. आपने अमेरिका के साथ रिश्तों को बनाया, चीन के साथ रिश्तों को सामान्य किये. आज जब मै सोचता हू की जब आपने बोफोर्ष सौदा किया होगा तो आपके मन में जरुर अपने देश को मजबूत बनाने का सपना रहा होगा ये अलग बात है कि आपको बदनामी मिली लेकिन आपको ये जान के ख़ुशी होगी कि कारगिल उसी बोफोर्स तोपों के चलते जीता गया था और उस समय सैनिक आपके जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. रामजेठमलानी जो कि आप पे रोज आरोप  लगाते थे जब वो २००४ के चुनाव लखनऊ से लड़ रहे थे तो उन्होंने स्वीकार किया था कि "हमने उस यंग इंडियन को गलत समझा. वो बहुत आगे कि सोचता था." आपको ये भी जान के ख़ुशी होगी कि आपको कोर्ट ने बेदाग साबित किया था.

राजीव, आज समझ में आता है कि आप कितना आगे कि सोचते थे. आपको तो याद होगा कि १९८५ में कांग्रेस के शताब्दी अधिवेशन में कहा था कि जब हम १०० पैसे यहाँ से भेजते है तो लोगों तक १५ पैसे ही जा पाते है बाकी ८५ पैसे दलाल  बीच में ही खा जाते हैं. आपको ये जान के बहुत दुःख होगा कि आज के समय में शायद ५ पैसा भी नहीं जा पता है.
आपने पंजाब, आसाम,  पूर्वोतर भारत में शान्ती समझौते किये. श्रीलंका में शान्ती सेना भेजे जिसकी कीमत आपको जान दे के चुकानी पड़ी, वहाँ तो शान्ती स्थापित हो गयी है, लेकिन नक्सलवाद बहुत ज्यादा फैल गया है. 

मै बहुत दुःख के साथ बता रहा हू कि आपके बहुत सारे सपने अभी भी पुरे नहीं हो पाए हैं. आपके भारत में अभी भी इंसान भूख से, बेकारी से बेबसी  से मरते हैं. कहने को हम संसार कि छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए है लेकिन अमीरी-गरीबी का भेद बहुत ज्यादा बढ़ गया है. आज भी आपके भारत में लाखों बच्चे स्कूल नहीं जाते. अभी भी लाखो औरतों के पास पहने को कपडे नहीं हैं. आपको गंगा एक्शन प्लान तो याद ही होगा जो आपने  गंगा को स्वच्क्ष रखने के लिए शुरू किया था उसका सारा पैसा भ्रस्टाचार की भेट चढ़ गया. गंगा आज भी अपनी बेबसी  पे आसू बहा रही है और दिन पे दिन मरती जा रही है.
आज आपकी कांग्रेस भी बहुत बदल गयी है. आपके समय में जो कांग्रेस गरीबों के लिए सोचती थी, आम हिन्दुस्तानियों के लिए सोचती थी, आज वो भी पूंजीवादियों के लिए सोचती है. कहने को तो आज भी समाजवाद का नारा देती है लेकिन समाजवाद अब कांग्रेस के घोषणापत्रों पे ही रह गया है.

आपके समय में जो कांग्रेस काश्मीर से ले के कन्याकुमारी तक होती थी उस कांग्रेस का आधार बहुत तेजी से सिमटता जा रहा है. अब कांग्रेस में जमीं पे काम करने वालों कि पूछ नहीं होती, इसकी नीतियाँ वातानुकूलित कमरों में तैयार होती हैं.
और अंत में आपसे एक शिकवा है कि आपको इतनी जल्दी जाने कि जल्दी क्या थी. काश आपने उस समय सोचा होता कि आपके बिना आपके भारत का क्या होगा.
इश्वर आपकी आत्मा को शान्ती प्रदान करे.


आपका,
दीपक 

तेरे ख़त

प्यार की आख़री पूँजी भी लुटा आया हूँ
अपनी हस्ती को भी लगता है मिटा आया हूँ
उम्र भर की जो कमाई थी गँवा आया हूँ
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

तूने लिखा था जला डालूं मै तेरी तहरीरें
तूने चाहा था जला डालूं मै तेरी तस्वीरें
सोच ली मैने मगर और ही कुछ तदबीरें
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

तेरी ख़ुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे
प्यार में ड़ूबे हुए ख़त मै जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मै जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाए रखा
जिन को एक उम्र कलेजे से लगाए रखा
दीन जिनको जिन्हे ईमान बनाए रखा

जिनका हर लफ़्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैग़ाम-ए-ज़ुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह

तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे
सालहासाल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे

तेरे रुमाल तेरे ख़त तेरे छल्ले भी गये
तेरी तस्वीरें तेरे शोख़ लिफ़ाफ़े भी गये
एक युग खत्म हुआ युग के फ़साने भी गये
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

कितना बेचैन उन्हे लेने को गंगाजल था
जो भी धरा था उन्ही के लिये वो बेकल था
प्यार अपना भी तो गंगा की तरह निर्मल था
तेरे ख़त आज मै गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

(राजेन्द्रनाथ 'रहबर)

नशीली रात में, जब तुमने जुल्फों को संवारा  है
हमारे जज्बा-ए-दिल को, उमंगो ने उभारा है
गुलो को मिल गयी  रंगत, तुम्हारे सुर्ख गालों से
सितारों ने चमक पाई तब्बसुम के उजालों  से
तुम्हारी मुस्कराहट ने बहारो को निखारा है
हमारे जज्बा-ए-दिल को  उमंगो ने उभारा  है
लबे रंगीन अरे तौबा गुलाबी कर दिया मौसम
तुम्हारी शोख नजरों ने शराबी कर दिया मौसम
नशे में चूर है आलम, नशीला हर नजारा है
हमारे जज्बा-ए-दिल दिल को, उमंगो ने उभरा है
रात यूँ दिल में तेरी याद आयी
जैसे वीराने में चुपके से बहार आए
जैसे सहराओं में हौले से चले यादे - नसीम 
जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाये 
(फैज़ अहमद फैज़ )

Wednesday, May 9, 2012

गुलों में रंग भरे आज नौबहार चले


गुलों में रंग भरे आज नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
कफस उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
कभी तो सुबह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुशकबार चले
बडा़ है दर्द का रिश्ता ये दिल गरीब सही
तुम्हारे नाम पे आएंगे गमगुसार चले
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिजरां
हमारे अशक तेरी आकबत संवार चले
मकाम 'फैज़' कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कुए यार से निकले तो सुए दार चले
(फैज़ अहमद फैज़ )

Tuesday, May 8, 2012

सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख़्त गिराए जाएंगे



हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अज़ल मे लिक्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएंगे .
दम महकूमों के पाओं तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काअबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख़्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंजर भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा ‘अनल हक़’ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो.
(फैज़ अहमद फैज़ )